शाहदरा से कश्मीरी गेट
शाहदरा मेट्रो स्टेशन आज थोड़ा उदास सा लग रहा था। साधारण सुरक्षा चैकिंग से गुजरने के बाद आगे बढ़ा।
जहां से मेट्रो कार्ड को रिचार्ज कराया और अपने पर्स में रखते हुए भीड़ से बच गया। मेट्रो की निकासी मशीन थोड़ी खराब हालत में थी.. कुछ ही पलों में लोगों का जमावड़ा सा लग गया। पर्स को प्रवेश गेट से सटाकार अंदर दाखिल हुआ ऊपर लगी घड़ी बता रही थी कि किस समय कौन सी ट्रेन हैं. खैर, जल्दी होने के कारण तेजी से मेट्रो की ओर दौड़ा। इस बीच अपने बैग को भी संभालाता हुआ भागा और जब लगा कि इस स्थिति से मेट्रो नहीं छूटेगी तब जाकर रुमाल को जेब से निकाला और आ रहे उस पसीने को पोछा जो आटो में बिल्कुल सिमट कर बैठी लड़की के स्पर्श से था। रूमाल में से उसकी देह की भीनी खुशबू महक रही थी। स्टेशन पर लगे बड़े बड़े बोर्ड किसी आने वाली फिल्म या किसी मोबाइल कंपनियो का बखान कर रहे थे.. कुछ लोग विज्ञापनों के शीशों को देखकर अपनी बालों को सवांर रहे थे। पहले कोच वाले स्थान पर नीचे फर्श पर लिखा था. केवल महिलाएं लेकिन वहां महिलाएं सिर्फ नाम मात्र को ही थी.. हर बार की तरह पुरूष वहां भी अपना हक जमाने के लिए तैयार थे।
मेट्रो स्टेशन में पीली लाइन लोगों के जूतों से काली पड़ चुकी थी। हवा में कुछ नमी थी। मेट्रो का इंतजार करते करते लोगों के कपड़े पसीने से आर-पास की तैयारी में थे. एक ओर दिलशान गार्डन की मेट्रो लाइन में लोग चढ़ने को तैयार थे.. वहां कोई धक्का मुक्की नहीं थी। तो दूसरी ओर रिठाला लाइन की मेट्रो में लोगों की भीड़ जुटने लगी। स्टेशन के खुली जगह से शाहदरा की लोकल ट्रेन की आवाज अखबार पढ़ने से दूर कर रही थी.. पीले रंग में पुते हुए बोर्ड पर तीन भाषाओं में लिखा हुआ शाहदरा जंक्शन स्टेशन की अहमियत को बयां कर रहा था.. प्लेटफार्म पर खड़ी हुई लोकल ट्रेन रह रह कर अपने शहर कोलकाता की यादें ताजा करा रही थी..
वहीं सबसे आगे वाले कोच में खूबसूरत लड़कियों के दर्शन हो रहे थे तो कुछ अपने कम कपड़ों का प्रदर्शन कर रही थी। जिन्हें देखकर फिर से मन में सकुंचित यौवन इच्छाएं व्यापक होने लगी। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों लेक्मे फैशन वीक चल रहा हो।
बीच बीच में मेट्रो में होने वाली घोषणाएं यात्रियों को खुद से बोर होने से बचा रही थी। चार कोच वाली ट्रेन बेहद धीमी गति से यात्रियों के सामने आ खड़ी हुई थी मानों आज के जमाने की तकनीक का बखान कर रही थी. मैं, बिना किसी से धक्का मुक्की किए बिना मेट्रो के अंदर चढ़ गया.. सहसा एक झटके से मेट्रो अपने गंतव्य की ओर चल दी.। अपने देश में तो मेट्रो सबसे पहले कोलकाता में आई थी. जिसे आए हुए भी बमुश्किल 30 साल भी नहीं हुए थे... विदेशों मे तो मेट्रो को एक लंबा अरसा गुजर चुका था। जहां शानदार लोकेशन आपका इंतजार करती हैं। लेकिन दिल्ली की मेट्रो का अपना अंदाज हैं। इस बीच ना जाने कब ट्रेन शाहदरा से वेलकम आ गई पता हीं नहीं चला। वेलकम सुनते ही 2007 की सुपर हिट फिल्म वेलकम याद आ गई।
वेलकम से ट्रेन अपने अगले पड़ाव की ओर चल दी उसका अगला स्टेशन था.. सीलमपुर जो दिल्ली में एक अनोखे अंदाज के लिए जाना जाता हैं.. मेट्रो की बाहर की लोकेशन में सुंदर पर्वत नदियों की बजाय ताश खेलते लोग, कूड़ा बीनते बच्चे , पटरी पर बैठा एक छोटा लड़का शौच करते हुए लोग और मेट्रो से रेस लगाती दिल्ली की लोकल ट्रेन इन्हें देख कर बस मन में एक सवाल आता हैं कि यहां विधया बालन का शौच वाला विज्ञापन कितना प्रासंगिक हैं.. और मेट्रो धीरे से सीलमपुर स्टेशन की ओर बढ़ती हैं.। इन सबके बीच बाएं हाथ की ओर खुला सीलमपुर मेट्रो का दरवाजा। यहां से कुछ लोग इस अंदाज में चढ़े कि देखते ही लग गया कि आखिर क्यों ये दिल्ली का खास इलाका माना जाता हैं....
अब अगला पड़ाव था शास्त्री पार्क यहां से मेट्रो की गाति थोड़ी तेज हो गई थी.। दिल्ली की यमुना को देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे ना जाने कितने लोग इसके अपमान के लिए जिम्मेदार हैं... लेकिन ये अभी भी चुप
हैं.. स्थिर हैं. और धैर्य से आगे की ओर चल रही हैं। इस बीच कश्मीरी गेट पर उतरने वाले लोग अपनी –अपनी सीट से उतरने लग रहे थे.. कुछ उम्रदराज लोग अपने लिए बनाई गई सीट पर बैठने के लिए उतवाले दिख रहे थे... मेट्रो धीरे – धीरे यमुना को पार कर चुकी थी.. जैसे लगा कुछ छुट गया हैं... कुछ ही पलों में मेट्रो कश्मीरी गेट पर शाही अंदाज में रूकती हैं... लोग खुद ब खुद रास्ता छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते बल्कि मेट्रो से बाहर निकलने वाले लोगों द्वारा धक्का देकर सामने से हटाया जाता हैं. सामने बड़े बोर्ड पर लिखा हुआ हैं कश्मीरी गेट। दोपहर के करीब 2 बजकर 15 मिनट हुए थे ।
रवि कुमार छवि
(पूर्व छात्र , भारतीय जनसंचार संस्थान)